क्रेज़ी फ़ैंटेसी की दुनिया

प्रकाशितः अहा ज़िन्दगी, वर्तमान साहित्य एवं कहानी संग्रह तीसरी बीवी

Friday, June 12, 2009

अभिज्ञात की कहानी

पोर्ट टारटाइज समुद्र तट पर स्थापित किया गया था। यहां चल रहा था कछुओं पर अनुसंधान। उसका एककारण यह था कि यहां भारी तादाद में दुनिया भर से कछुए अन्डे देने के लिए आते थे। समुद्र का यह कोनाउन्होंने क्यों पसन्द किया था उसके क्या खास कारण हैं इस पर भी हो रही थी खोज। खोज के लिए यहां अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया गया था। इस पोर्ट से वस्तुओं की आवाजाही नहीं होती थी। यहां चूंकि पूरीदुनिया के कछुए आते थे इसीलिए इन्हें कछुओं का पोर्ट कहा गया और उसका नाम करण किया या पोर्टटारटाइज कछुओं के रहन-सहन और समुद्र की अथाह गहराइयों के रहस्यों को जानने के कई उपाय यहां केअनुसंधान केन्द्र में चलते रहते थे जिसमें कछुओं की तमाम गतिविधियों पर निगाह रखना शामिल था।
इस अनुसंधान केन्द्र में कुल जमा पांच स्टाफ था जिनमें एक थे प्रोफेस
एनएन निगम, जो केन्द्र के प्रमुखथे। निगम सिर्फ़ प्राणि विज्ञानी थे बल्कि वे भाषा विज्ञान के भी गहन अध्येता था। वे शु-पक्षियों कीबोली को समझने में भी किसी हद तक सफल थे। वे अरसे से कछुओं की भाषा समझने की कोशिश में जुटे थे।दुनिया भर से यहां अन्डा देने आये कछुओं की विभिन्न प्रजाति के कछुए तट के मुहाने पर आते थे और अन्डेदेते थे। अंडे देने से पहले वे तटीय हिस्से में घोंसले बनाना शुरू कर देते थे। हजारों की संख्या में ये समुद्र केकिनारे रेत पर जाते हैं और सुरक्षित लगते स्थानों पर गङ्ढे खोद कर अंडे देते। अंडे देने के बाद मादा कछुएवापस समुद्र में लौट जाते हैं। पैंतालीस दिन बाद अंडों से उनके बच्चे निकलते हैं। एक कछुआ एक बार में बीस सेतीस अंडे देता है। अंडे देकर लौटते समय उनमें से कुछ को पकड़कर उन पर माइक्रोचिप, वीडियो कैमरा, रेडियोट्रांसमीटर, दिमाग में इलेक्टा अन्य उपकरण बिठाकर उन्हें फिर समुद्र में छोड़ दिया गया था जिससे के वेअपनी अलग-अलग दुनियाओं में चले जायें और वहां से इन उपकरणों के जरिए उनके जीवन, पयार्वरण औरसमुद्र के सम्बंध में कई अनुद्धाटित पहलुओं की जानकारी मिलने की संभावना थी। वे उनकी गतिविधियों परपैनी निगाह रखे हुए थे। प्रोफेसर का घर भी थोड़ी दूर पर था। जहां वे अपनी पत्नी बेटी के साथ रहते थे। किन्तुउनका ज्यादातर समय घर के बजाय अनुसंधान केन्द्र में ही बीतता था, जबकि दूर दराज इलाके में बने इसकेन्द्र में बड़ी मुश्किल से ही सरकारी व्यक्ति आते जाते थे। कार्यालय के कर्मचारी भी अक्सर डयूटी पर नहींआते थे। आते भी थे तो महीने में दो चार दिन के लिए। जो भी आता यहां से ट्रांसफर लेने की कोशिश में लगजाता। एक ढंग से प्रोफेसर ही यहां के कर्ताधर्ता थे। प्रोफेसर को अपनी एक खोज के लिए अन्तर्राष्ट्रीयपुरस्कार मिल चुका था और उन्हीं की मांग पर यह अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया गया था। सरकारी महकमेमें उनके काम को लगभग व्यर्थ की कवायद मान लिया गया था किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय समम्मान के कारणउनकी साख थी जिसके कारण उनके काम में हस्तक्षेप करने का साहस किसी में नहीं था। केन्द्र कोसमय-समय पर प्रधानमंत्री कार्यालय सीधी राहत राशि भेज दिया करता था। हालांकि उनका ज़िक्र आते हीलोगों के चेहरे पर एक परिहास की परछाई खिंच जाती थी अधिकारियों के चहरे पर। प्रोफेसर के इस तर्क कोकोई समझ नहीं पाता था कि इससे क्या हासिल होना है। कोई यह पूछने भी नहीं आता था कि इस केन्द्र ने क्याहासिल किया है। स्वयं प्रोफेसर ने अपने अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार को भी इस केन्द्र की स्थापना के लिएसरकार को समर्पित कर दिया था। प्रोफेसर निगम के कार्यों के कारण दुनिया भर के एनआरआई भी इसकेन्द्र की आर्थिक मदद करते रहते थे। कछुओं को लेकर उनकी गहरी दिलचस्पी के कारण विभाग में उन्हेंप्रोफेसर निगम नहीं बल्कि प्रोफेसर टारटाइज कहा जाने लगा था। कछुओं पर उनके लेख अन्तर्राष्ट्रीय शोधपत्रों में छपते जिन्हें खासे सम्मान के साथ देखा जाता था। वे कई बार अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भी कछुओंपर पर्चे पढ़ने के लिए बुलाए जाते थे।
कछुओं के साथ उनका सम्बंध इतना प्रगाढ़ होता गया कि वे उनकी भाषा किसी हद तक समझने में कामयाबहोने लगे थे। हालांकि यह अभी आरंभिक चरण में ही था। उन्होंने यह रहस्य किसी पर ज़ाहिर नहीं होने दियाक्योंकि इसका खुलासा बहुत ख़तरनाक़ हो सकता था। वे भाषा को यदि ठीक ठीक प्रकार से समझ लेने मेंक़ामयाब हो जाते हैं तो दुनिया भर में कछुओं से वे सीधी बात कर सकते थे। और कछुओं से वे समुद्र की अतलगहराइयों को राज जाने लेते। वह भी लगभग पांच सौ सालों का इतिहास क्योंकि कछुओं की पांच सौ साल उम्रआम बात थी। कई कछुओं को उनके पूर्वजों की बातें भी याद होने की संभावना थीं, जो उन्होंने उनसे सुन रखी थीं।
कछुओं पर शोध में डूबे प्रोफेसर ने अपने दाम्पत्य जीवन पर कभी ध्यान नहीं दिया। बच्ची पढ़ाई-लिखायी मेंबेहद कमज़ोर थी और वह अपनी कक्षाओं में फेल होती रहती थी और पत्नी अक्सर बीमार चिड़चिड़ी। उन्होंनेएक कम पढ़ी लिखी सीधी-साधी देहाती लकड़ी से यह सोच कर विवाह किया था कि वह उनके काम में किसीप्रकार से बाधक नहीं बनेगी क्योंकि उनका अपना जीवन सामान्य लोगों से अलग था। सपने अलग थे जीने केतौर तरीके अलग थे। व्यर्थ की पारिवारिक औपचारिकताओं के लिए उनके जीवन में कोई स्थान नहीं था। उन्हेंइस छोटे से जीवन में बहुत कुछ करना था। लोगों का जीवन बेहतर बनाने का लक्ष्य था उनके सामने और वेजीवन की गुत्थियों को सुलझाना और समझना चाहते थे। लेकिन उनका वैवाहिक जीवन वैसा नहीं हो पाया जैसाउन्होंने चाहा था। पत्नी भी दूसरी अन्य पत्नियों की तरह निकली। वह दूसरे के जीवन से अपने जीवन के ढर्रेकी तुलना करती और उनसे भी वही अपेक्षाएं जो सामान्य अन्य पति से कोई पत्नी करती है। वह चाहती थी वेउसके मायके जायें। मेहमानों से बोले-बतियाएं। समाज में उठे बैठें। लोगों के यहां भी आये- जायें। तफरीह पर लेजायें। समय पर काम पर जायें और डयूटी का समय ख़त्म होते ही घर लौटें। यह स्वाभाविक था कि प्रोफेसर सेनहीं हो पाया और वह कर्कशा और जिद्दी होती गयी। अक्सर अनबन रहती। झगड़े होते। वे तनहा होते गये औरपूरा जीवन ही शोध को समर्पित होकर रह गया। पत्नी कत्तई नहीं समझ पायी कि प्रोफेसर क्या हैं। वह दूसरोंसे कितने भिन्न हैं। पत्नी अक्सर बीमार रहने लगी थी। नहीं रहती तो भी वह कई कुंठाएं से ग्रस्त थी औरप्रोफेसर को मानसिक तौर पर बीमार ही लगती। उसमें एक गंभीर बीमारी के सिम्टम्स भी प्रोफेसर को नज़रआये अलबत्ता तो वह अपने को डाक्टर को दिखाने को तैयार नहीं हो रही थी और फिर दवाएं लेने में उसनेलगातार कोताही बरती। दवाएं की अनियमितता ने उसे ऐसी स्थिति में ला पटका जहां दवाएं प्रायः कम ही असरकरतीं। वे बेटी को समय देना चाहते थे लेकिन वह कोशिश करती कि बेटी भी उनसे दूर ही रहे। हर बात में लगताकि प्रोफेसर का व्यवहार बेटी के प्रति भी स्वस्थ नहीं है। वे बेटी से अपेक्षाकृति अधिक गंभीरता से पेश आतेहैं। पत्नी को लगता कि प्रोफेसर खुद के व्यवहारिक नहीं हैं बेटी को भी अपने जैसा बना देंगे। ज्ञान -विज्ञानकी नीरस दुनिया के नर्क में वे बेटी को भी झोंके देंगे। और और जब प्रोफेसर अमरीका के एक अन्तर्राष्ट्रीयसेमिनार में पेपर पढ़ने गये थे वहां फोन पहुंचा कि पत्नी का बीमारी से देहांत हो गया है। जब वे घर लौटे तो तबमहसूस हुआ कि उनसे बड़ी गलती हुई है। पत्नी की छोटी मोटी इच्छाओं तक का उन्होंने ध्यान नहीं रखा था औरउसकी बीमारी को भी गंभीरता से नहीं लिया। यदि वे थोड़ा सामान्य हो जाते अर्थात दूसरे आम लोगों की तरहजीते तो शायद पत्नी अब भी दुनिया में होती। पत्नी की ग़लती नहीं थी। वह एक साधारण औरत थी उसके सपनेऔर इच्छाएं भी वैसी ही थीं तो यह ग़लत कहां था। यदि वे अस्वाभाविक ज़िन्दगी जीते हैं और दूसरों से अलगसोच रखते हैं तो यह उनकी अपनी ग़लती है। वे अपने को दूसरों पर थोपने वाले कौन थे। उन्होंन लगा बेटी केप्रति भी वे बेहद लापरवाह रहे हैं और अब बेटी की ज़िम्मेदारी ही उनके जीवन की प्रथामिकता होगी।
प्रोफेसर पश्चाताप की आग में जलने लगे। अब वे अनुसंधान केन्द्र बेहद कम जाते। बच्ची के साथ अधिक सेअधिक वक़्त गुजारते। बच्ची को कहानियां सुनने का बड़ा शौक था। और उसकी ज़िद पर वह रोज़ रात कोकहानियां सुनाते। बचपन में सुनी और बाद में पढ़ी कहानियां को उनका स्टाक जल्दी ही ख़त्म हो गया किन्तु बेटीकी फ़रमाइशें जारी रहीं। अब वे मनगढ़ंत किस्से सुनाने लगे थे और जल्द ही इसमें माहिर हो गये। एक दिन उन्हेंयह ख़याल आया कि क्यों इन किस्सों को लिख कर किसी प्रकाशक को थमा दें ताकि अन्य बच्चे भी इससेलाभान्वित हों। प्रोफेसर ने जो किस्से लिखे वे धारावाहिक की शक्ल में थे। एक ख़ास चरित्र था जो उनकी हरकहानी में जाता था जिसका नाम उन्होंने क्रेज़ी फ़ैंटेसी रखा था। क्रेज़ी फ़ैंटेसी मनचाही शक्लें अख्तियारकरने में माहिर था। कभी वह बड़े जानवर की शक्ल ग्रहण कर लेता तो कभी दैत्य का। कभी वह चुड़ैल बन जातातो कभी सांप, कभी मछली तो कभी बंदर। वह अच्छों के साथ अच्छे व्यवहार करता और बुरे को दंड देता। यही वेकिस्से थे जो प्रोफेसर अपनी बेटी को सुनाते। और जो धारावाहिक कहानियां उन्होंने लिखी थी वे वही थीं।प्रकाशक ने उन्हें अच्छी खासी रकम दी और क्रेज़ी फ़ेंटेसीके कारनामों पर कई धारावाहिक उपन्यास लिखने काप्रस्ताव दे गया। जितने भी खंड वे चाहें लिखें। फिर क्या था प्रोफेसर का काम आसान हो गया। वे किस्सों केदुनिया में डूबते गये। क्रेज़ी फ़ैंटेसी सीरीज के पहला उपन्यास ही धमाकेदार साबित हुआ। बच्चें बड़े बूढ़े सबक्रेज़ी फ़ैंटेसी के तिलस्म में फंसते नजर आये। लोगों को उनके अगले उपन्यास का इन्तज़ार रहने लगा।
फिर क्या था उनके क्रेज़ी फ़ैंटेसी सीरीज के उपन्यास एक के बाद एक निकलते गये। उपन्यास लोकप्रियउपन्यासों की कड़ी में एक मील का पत्थर साबित हुआ तथा बिक्री के नये कीर्तिमान भी स्थापित किये।उपन्यासों की लोकप्रियता का अन्दाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उस पर फ़िल्में बनने लगीं। धारावाहिकबने और रेडियो नाटक भी बने। अखबार-पत्रिकाएं उनकी चर्चा करने लगी थीं। मनोरंजन की दुनिया में यह एकनया धमाका था। कोई उपन्यास इस कदर पापुलर नहीं हुआ था कोई चरित्र इतना चमत्कारपूर्ण औरविस्मयकारी नहीं था। क्रेज़ी फ़ैंटेसी बुरे और अच्छे दोनों ही विशेषताओं से लैस था। उसकी खूबियां लोगों कोरिझातीं उसका खामियों का खौफ़ भी जबर्दस्त था। क्रेज़ी फ़ैंटेसी की उपस्थित हर कहीं थी। उसके रूप अनेक थेसम्मोहक भी और डरावना भी। पुरस्कार और दंड उसके प्रमुख कार्य थे। लेकिन वह सहायक भी हो सकता थाकिसी का। चरित्र के आसपास बने होने का आभास हो सकता था उसके पाठकों को। फिल्मों ने क्रेज़ी फ़ैंटेसी केकई रूप बड़े पर्दे पर दिखाये थे और कई बार सिनेमाघर में क्रेज़ी फ़ैंटेसी के रूप के देख कर दर्शकों की चीखनिकल जाती थी। यह चरित्र की कामयाबी थी और फिल्म में उसके साथ डायरेक्टर का न्याय था, उसकीगंभीरता थी और कला का कौशल था। फ़िल्मी तकनीक का विकास था।
क्रेज़ी फ़ैंटेसी लोकप्रिय उपन्यासों का एक अविस्मरणीय चरित्र बना रह सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।उसने अपनी हदें पार कर दी। अचानक क्रेज़ी फ़ैंटेसी में जान गयी और हंगामा बरपा हो गया। साहित्य कीदुनिया में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। कोई औपन्यासिक और एकदम काल्पनिक चरित्र जीता जागता दुनियामें उपस्थित नहीं हुआ था किन्तु ऐसा हो गया। पहले पहल तो प्रोफेसर निगम को विश्वास नहीं हुआ। उसनेइधर उधर से सुना था। यह बात उसी की तरह जब लोगों ने पहले सुनी तो सोचा यह उपन्यास के किरदार को हिटकरने का कोई फंडा है। चूंकि क्रेज़ी फ़ेंटेसी पर फिल्में बन रही थीं, नावेल बिक रहे थे, धारावाहिक चल रहे थे सोस्वाभाविक था करोड़ों की पूंजी इस चरित्र में लगी थी और क्रेज़ी फ़ैंटेसी को लेकर किसा प्रकार की अतिरिक्तचर्चा इसे और लोकप्रिय बना सकती थी जिनका ध्यान इस पर अब तक नहीं गया है उनका ध्यान आकृष्ट करासकती है किन्तु ऐसा नहीं था। देश के कई हिस्सों में ऐसी खबरें एक साथ सुनायी दीं कि क्रेज़ी फ़ैंटेसी देखा गया है, जिसे देखने के बाद कई लोग बेहोश हो गये और उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। कुछेक लोगों की मौतकी खबरें भी सुनी गयी हैं। इन खबरों से देश के अखबार भरे पड़े थे और टीवी चैनल लगातार उन लोगों के इंटरव्यूप्रसारित कर रहे थे जिन लोगों ने उसे साक्षात देखा है। पते की बात यह थी कि लोगों ने क्रेज़ी फ़ेंटेसी को उन्हींरूपों में देखा जैसा उपन्यासों में उसका वर्णन था। किसी ने कहा कि जब वह टीवी पर क्रेज़ी का सीरियल देख रहाथा एकाएक वह टीवी से बाहर निकल कर सामने गया था और वह जब उसकी ओर लपका तो वह बेहोश होगया। कोई कह रहा था कि वह देर रात को वह क्रेज़ी का नावेल पढ़ रहा था और एकाएक क्रेज़ी की जोरदारगुर्राहट उसे सुनायी दी पलट कर उसने देखा तो पाया कि वह दैत्याकार उसके पीछे खड़ा था। उसकी जीभ लपलपारही थी। उसके बड़े-बड़े नाखून वाले हाथ उसकी ओर लपके थे फिर क्या हुआ इसका उसे होश नहीं। उसने बाद मेंअपने को अस्पताल में पाया। इस प्रकार की दहशत की खबरें लगातार आने लगी थी और फिर तब गजब हुआजब सिनेमाहाल में क्रेज़ी फ़ैंटेसी की फिल्म चल रही थी और वह सिनेमाहाल में ही प्रगट हो गया। भगदड़ में दसलोगों की जानें गयीं कई अन्य घायल हो गये। कोई यह नहीं बता पाया कि वह परदे से निकल कर ठीक उसकेसामने खड़ा हो गया किन्तु गया कहां। किसी को यह देखने का होश नहीं था। सब अपनी जान बचाकर भागने केफेर में थे।
टीवी और अखबार वाले उसके घर के सामने मजमां लगाये हुए थे और उससे तरह-तरह के सवाल पूछे जा रहे थे।क्रेज़ी फ़ैंटेसी क्या है? वह कहां रहता है? क्या खाता पीता है? पहली बार वह कहां देखा गया था? उससे सामनाकरने का क्या उपाय हैं? वे उससे पहली बार कम मिले थे?
मीडिया यह मानने को कत्तई तैयार नहीं था कि यह काल्पनिक चरित्र था जो अब वास्तविक हो उठा है। यहसंभव ही नहीं है। और यह बात कोई वैज्ञानिक कहे तो और गले उतरने लायक नहीं है। यह कैसे संभव है कि कोईवास्तविक प्राणी की पहले ही कल्पना कर ले। उसके हाव-भाव तौर तरीकों, रूप-रंग और आवाज़ों तक को जानले जैसे कि वह अरसे से उसे जानता हो।
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के वैज्ञानिक निगम से पूछताछ करने से पहले तो प्रशासन कतराता रहा किन्तु मीडियाके बेलौस सवालों ने उसका हौसला बढ़ाया। मुख्यमंत्री तक ने सीधे केन्द्रीय गृह मंत्रालय से बात की और उनकेआरम्भिक पूछताछ की गयी। यह ज़रूर हुआ कि उनको पर्याप्त सम्मान देते हुए उनसे उनकी प्रयोगशाला मेंपूछताछ का समय लिया गया और फिर वहीं पूछताछ की गयी। प्रोफेसर निगम के सवालों के जवाबजांचकर्ताओं को संतुष्ट नहीं कर सके। वे बार-बार क्रेज़ी फ़ैंटेसी के काल्पनिक होने की बात दुहराते रहे। उनकेजवाब से गृहमंत्रालय को अवगत कराया गया। केन्द्रीय टीम खुद चलकर उनके यहां पहुंची लेकिन कोई नतीज़ानहीं निकला। देश भर में क्रेज़ी फ़ैंटेसी के प्रकट होने के नये नये मामले आते रहे और लोगों का प्रोफेसर निगमऔर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जोर पकड़ता गया। अन्ततः प्रोफेसर निगम को उनकी बेटी सहित उनकीप्रयोगशाला में नज़रबन्द कर दिया गया। ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि प्रोफेसर की जान को खतरा होसकता था प्रदर्शन उग्र होते जा रहे थे। क्रेज़ी के बारे में जब तक प्रोफेसर नहीं बताते कोई कार्रवाई संभव हीनहीं लग रही थी। लोगों का कहना था कि प्रोफेसर इस अलौकिक शक्तिसम्पन्न प्राणी के सम्बंध में बहुतअच्छी तरह से जानते हैं किन्तु किन्हीं कारणों से वे उसका बचाव कर रहे हैं या फिर सरकार सब कुछजानते-बूझते हुए लोगों के बचाव में आगे नहीं रही है। क्रेज़ी से जुड़े साहित्य, फिल्म धारावाहिकों परप्रतिबंध लगाया जा चुका था लेकिन मामला थमता नज़र नहीं रहा था। मरने वालों की संख्या सौ से अधिक होचुकी थी। जिन लोगों ने देखा था वे दहशत से उबर नहीं पा रहे थे। कुछ लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुके थे।
----------
प्रोफेसर निगम अरसे बाद अपनी प्रयोगशाला में थे। क्रेज़ी फ़ैंटेसी सीरिज के लेखन ने उन्हें वक्त ही नहीं दियाथा कि वे कछुओं से जुड़े अपने शोध को आगे बढ़ा सकें। अब क्रेज़ी फ़ैंटेसी की कहानियां लिखने का उनमें साहसनहीं रह गया और ज़रूरत भी नहीं थी। उसके चलते वे विकट परिस्थितियों में फंस गये थे। वे उलझन में थे कि ऐसाहुआ तो कैसे। उन्हें दूर-दूर तक याद नहीं आता कि ऐसे किसी प्राणी के बारे में उन्होंने किसी किताब में पढ़ा होऔर अवचेतन में वे उसके बारे में लिख बैठे हों।
मन उदास और बुझा-बुझा सा था। बाहर कहीं निकल कर घूम आने का कोई उपाय था। बाहर सख्त पहरा था।जाने कब तक वे नज़रबन्द रहेंगे और इस नज़रबन्दी से क्या हासिल होगा। उन्होंने पुराने शोध को आगे बढ़ाने कामन बनाया। कछुओं की बातों को समझने की ही कोशिश की जाये इस नज़रबन्दी में। उन्होंने कम्प्यूटरों पर वहमैसेज चेक किये जो कछुओं पर फिट किये गये थे। वे यह देखकर रोमांचित हो उठे कि एक कछुए ने अपनी ओर सेभी उनसे सम्पर्क करने की काफी कोशिशें की हैं। उसका वाइस मैसेज चेक किया। वह पहले से काफी बदला लगा।यह साफ़ दिखायी देता था कि कछुओं की भाषा समझने में उन्होंने जितनी कोशिश की है उससे अधिक कोशिशएक कछुए ने आदमी की भाषा समझने में और उसी प्रकार बोलने में की है। ध्वनि तरंगों को लिपि और उसेमानवीय आवाज़ में बदलने वाले साफ्टवेयर की मदद से कम्प्यूटर ने कछुए की भाषा का तर्जुमा किया था। वहकछुआ मदद चाहता था मनुष्य से। निगम ने कछुए से तत्काल सम्पर्क किया। आदमी की आवाज से उठतीतरंगों को उपकरणों की सहायता से कछुए तक सम्पर्क सध गया। और यह चमत्कार था जिसका प्रोफेसर कोहमेशा से इन्तज़ार था। वे कछुए से संवाद कर सकते थे। और उन्होंने किया भी। इसे वे बेहद गोपनीय भी रखनाचाहते थे।
यह साढ़े चार सौ साल की उम्र का कछुआ था। वह उनसे मदद मांग रहा था। उसका कहना था कि समुद्र में तेलनिकालने के जो प्रयास किये जा रहे थे उससे समुद्र की भारी क्षति होने जा रही है। समुद्र के पास अथाहसम्पदा है किन्तु उसे प्राप्त करने के तरीके मनुष्य ने नहीं सीखे हैं। उन्हें सीखना होगा। जिस प्रकार से तेलनिकालने के प्रयास किये जा रहे हैं उससे स्वयं कछुए की जाति भी खतरे में पड़ने जा रही है और मछली सहितअन्य जीव भी जो समुद्र में रहते हैं।
-----
धीरे-धीरे कछुआ प्रोफेसर का दोस्त बन गया और वे उसके साथ चैट पर बैठे रहते। प्रोफेसर ने अपनी समस्याबतायी क्रेज़ी फ़ैंटेसी के सम्बंध में। अपने अनुमान बताये कि क्या-क्या संभव है। कैसे हो सकती है ऐसीवारदात। कछुए के पास अपना साढ़े चार सौ साल का तजुर्बा था। उसके और भी साथी थे दुनिया भर के समुद्र मेंफैले हुए। अन्य प्राणी भी उसके दोस्त थे। कछुए ने सबसे सम्पर्क साधा। सबको बताया कि पृथ्वी के एक खासभूखंड में क्या हो रहा है। और फिर कछुए ने जो जानकारी दी वह प्रोफेसर के लिए पर्याप्त चौंकाने वाली थी।
----
प्रोफसर ने प्रधानमंत्री कार्यालय को फ़ोन लगाया और प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा। समय तय होगया क्योंकि वे स्वयं भी उनसे मिलना चाहते थे। प्रोफेसर के उपन्यास के चरित्र क्रेज़ी फ़ैंटेसीके चलते उनकीसरकार की खासी बदनामी हो चुकी थी। तत्काल एक विशेष विमान से उन्हें दिल्ली ले जाया गया और फिरप्रधानमंत्री निवास पर एक अति गोपनीय बैठक प्रधानमंत्री प्रोफसर के बीच हुई। बैठक में उन दोनों केअलावा और कोई नहीं था।
प्रोफेसर ने कहा-'प्रधानमंत्री जी क्या आपको पता है देश के कुछ हिस्सों में एक खास प्रकार की मछलियांविभिन्न समुद्र तटों पर पायी गयी हैं जिनका आकार सामान्य से कुछ बड़ा था।'
-'यह क्या सवाल हुआ। क्या आपको लगता है कि मेरे पास यह सब जानने का वक्त होता है। आपके कहने काआशय क्या है हम आपसे क्रेज़ीके बारे में जानना चाहते हैं और आप हैं कि मछलियों की चर्चा कर रहे हैं।'
-'यह बात उसी के संदर्भ में हो रही है। इन मछलियों में एक खास तरह के वायरस प्लांट किये गये थे जिनकेकारण मछलियों का आकार सामान्य की तुलना में अधिक हो गया था। वे अस्वस्थ थीं और देश के विभिन्न तटोंपर सुमद्र से बाहर निकल पड़ी थीं। जिन्होंने उस मछली को खाया उनमें एक खास प्रकार के फोबिया कासंक्रमण हो गया, जो सच और कल्पना का फर्क़ भूल जाते हैं। जो बात उनके दिलों दिमाग को गहरे तकप्रभावित करती है उसे वे सच मान बैठते हैं और अपनी कल्पना को ही हक़ीकत समझ बैठते हैं। चूंकि इन दिनोंमेरे उपन्यास लोगों को जेहन पर छाये हुए थे इसीलिए उन्होंने मेरी रचना के एक सशक्त पात्र को हक़ीकतसमझ लिया।'
-'आपका कहने का मतलब है कि क्रेज़ी फ़ैंटेसी केवल कल्पना है। लोगों को उसके होने का वहम हुआ है।'
-'हां। क्योंकि जो लोग भी उससे प्रभावित हुए हैं वे केवल दहशत से हुए हैं। क्रेज़ीके सशरीर होने का प्रमाण कोईनहीं दे पाया है। जो लोग मरे हैं वे दुर्घटना में मरे हैं या फिर तनाव के कारण।'
-'आपको कैसे पता चला कि मछलिओं में वायरस प्लांट किये गये हैं।'
-'मेरे अपने सोर्स हैं। जिन्होंने मुझे बताया। हम एक बहुत बड़ी अंतर्राष्ट्रीय साजिश का शिकार हुए हैं। हमेंहाथ पर हाथ धरे नहीं बैठना चाहिए।'
-'प्रोफेसर। क्या आपको पूरा यक़ीन है कि जो कुछ आप कह रहे हैं वह सच है।'
-'हां। मैं जानता हूं कि मैं किससे बात कर रहा हूं। यह वक््त व्यर्थ में समय गंवाने का नहीं है देश के तमाम लोगसंकट में हैं।'
-'एक खास तरह के वायरस के बारे में मुझे गृह मंत्रालय ने बताया ज़रूर था लेकिन यह नहीं बताया था कि वहवायरस मछलियों में प्लांट किया गया था और वह मछलियां हमारे देश में पायी गयीं।'
-'कृपया पता लगावाइये, प्रधानमंत्री जी। इस बात का भी पता लगावा लीजिए कि जो लोग फोबिया का शिकारहुए वे शाकाहारी हैं या नहीं। मेरा मतलब है वे मछलियां खाते हैं या नहीं।'
-'ठीक है किन्तु हम बड़ी मुश्किल मैं हैं यदि यह सच है तो। जिस देश ने यह किया है वह उससे हमारे रिश्तेबेहतरी की ओर जा रहे हैं। हमारे देश के कई बड़े सौदे उसके साथ लगभग अंतिम चरण में हैं। हम किसी भी क़ीमतपर सौदे को सफल कराने में लगे हैं। यह हमारी सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। और इन सौदोंकी सफलता ही हमें फिर से सरकार बनाने में सहायक सिध्द होगी। उसी के बल पर हम अगले चुनाव में लोगों केसामने जायेंगे। फिर आप तो जानते हैं कि गठबंधन सरकार की मुश्क़िलें। गठबंधन सरकार चलाना एक पलड़े मेंकई मेंढक तौलने के समान है। जिसे देखे गठबंधन तोड़ने की धमकी देता रहता है। जिस देश की यह करतूत है वहदेश हमें क्रेज़ी फ़ैंटेसी की बला से निपटने के लिए करोड़ों की राहत दे रहा है। दवाओं के रूप में और डॉक्टरों के रूपमें। डॉक्टरों की टीमें चुकी हैं और बीमार लोगों का इलाज किया जा रहा है। आशा की जाती है कि सब कुछ ठीकहो जायेगा क्योंकि वह देश स्वयं जानता है कि उसने हमें क्या बीमारी परोसी है और उसका क्या इलाज है। आपकेइस बात से इनकार नहीं होना चाहिए कि आपकी चुप्पी ही देश हित में है और हमारी सरकार के भी। हम जानते हैंआप देश के ज़िम्मेदार नागरिक हैं। फिलहाल जैसी स्थिति है आपसे आग्रह है कि सब्र रखें। हम आपको कुछदिनों के लिए अज्ञात स्थान पर नजरबंद करने जा रहे हैं जहां आप किसी से नहीं मिल सकते।'
-'यह क्या?'
-'यह ज़रूरी है क्योंकि यदि किसी के सामने आप कुछ कह बैठे तो हमारी सरकार तो गयी। हमारे सौदों पर भी आंच जायेगी। आप कूटनीति नहीं समझते प्रोफेसर। आप चिन्ता करें। आपकी बेटी को हम देश के एक बड़ेबोर्डिंग स्कूल में भेज रहे हैं जहां उसकी पढ़ाई सहित सारा खर्च सरकार वहन करेगी। और हां हम अंतरराष्ट्रीयपुरस्कार के लिए भी आपको नामित करने जा रहे हैं। आप तो जानते ही हैं कि वही देश के इशारे पर कई पुरस्कारतय होते हैं। इस साल पद्म पुरस्कारों के लिए भी हम सिफारिश करेंगे। आपकी शोध संस्थान प्रोजेक्ट पोर्टटारटाइज के लिए के लिए सौ करोड़ की ग्रांट दी जायेगी। फिर मिलते हैं। नमस्ते।'
और तेज कदमों से प्रोफेसर निगम प्रधानमंत्री कार्यालय से निकलने थे। बाहर निकलते ही उन्हें खुफियापुलिस के लोग अपने साथ किसी अज्ञात स्थान पर ले जाते हैं जहां उन्हें सबसे अलग तथा तमाम सुविधाएं सेलैस बंगले में रखा जाता है।
---
इधर प्रधानमंत्री ने गृहमंत्रालय से इस सम्बंध में चर्चा की और खफिया विभाग की उच्च स्तरीय बैठकबुलायी तो उन्हें जानकर हैरत हुई कि प्रोफेसर की बातों में सच्चाई थी। जो मछलियां पायी गयीं उनमें वायरसप्लांट किये गये थे। एक विकसित देश ने एक खास तरह के वायरस से छुटकारा पाने का यह उपाय किया था।दुनिया को एक बड़ी बीमारी से सौ साल तक बचाने वाले एक खास टीके को नष्ट करना उसकी मज़बूरी थी क्योंकिवह बीमारी दुनिया से अब ख़त्म हो चुकी है। रोग के वायरस से ही उसके निवारण के टीके बनाये गये थे। अबजबकि बीमारी का दुनिया से पूरी तरह से खात्मा हो चुका था टीकों के वायरस को ख़त्म किया जाना ज़रूरी थी। उसेख़त्म करने की घोषणा तो आनन-फानन में कर दी गयी किन्तु चाहकर भी वायरस के बदले स्वरूप को एकदमनिष्प्रभावी नहीं किया जा सका हालांकि उसकी प्रभाव काफी क्षीण हो गया था। वायरस का यह बदला रूपकिसी में संक्रमण कर जाये तो वह हैल्युसिनेशन बीमापी को जन्म दे कर सकता था। यह दीमागी बीमारी है जोकिसी व्यक्ति में उसकी तीव्रतर कल्पना को हक़ीकत का भ्रम पैदा करने में समर्थ है। इस बीमारी का इलाजसंभव था। यह बीमारी दीमागी हालत के ठीक होते ही अपना प्रभाव भी खत्म कर सकता था।
वायरस के बदले रूप को उस देश ने कुछ मछलियों के अन्दर प्लांट कर दिया और उसे उस देश के काफी दूर समुद्रमें छोड़ दिया गया। अब जबकि प्रोफेसर निगम दावा कर रहे हैं कि यह वायरस उन्हीं मछलियों से यहां आया हैतो यह दलील सही जान पड़ती है। और जल्द ही खुफिया विभाग ने इस बात की ताकीद कर दी कि जिन शहरों में येमछलियां पायी गयीं क्रेज़ी फ़ेंटेसीके कहर की खबरें उन्ही शहरों से मिली हैं। और जो लोग शिकार हुए हैं, उन्होंनेमछलियां खायी थी।
रिपोर्ट आने के बाद गठबंधन सरकार की बैठक हुई थी। क्रेज़ी फ़ैंटेसी से निपटने की जो योजना बनायी गयी थीवह व्यापक थी और बैठक में भाग लेने वालों के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर। बैठक के बाद सरकार की ओर सेक्रेज़ी फ़ैंटेसी से निपटने के लिए हजार करोड़ की रुपये राशि मंजूर की गयी थी। सरकार ने बताया कि प्रो. निगमने क्रेज़ी वायरस की खोज की है। यह वायरस मछलियों से फैला है। लोगों से अपील की गयी है कि वे मछलियां खायें। मछलियों से क्रेज़ी वायरस फैल सकता है। सरकार ने तमाम मछलियों को मारने की घोषणा की है। जिनलोगों ने अपने तालाब में मछलियां पाली हैं सरकार उन्हें मछलियों को मुआवजा देगी। जगह-जगह कार्यबलतैनात किये जायेंगे ताकि मछलियों का सफाया किया जा सके। यह फरमान तत्काल प्रभाव से लागू हो गया था।
---
यह प्रधानमंत्री से प्रोफेसर निगम की अगली बैठक थी। प्रधानमंत्री ने प्रोफेसर को बधाई दी थी उन्हेंवायरस की खोज के लिए जल्द ही सम्मान दिया जायेगा तथा वे क्रेज़ी वायरस किलर अभियान के सलाहकारनियुक्त किये गये हैं। वे हैल्युसिनेशन ग्रस्त लोगों की समस्या के निदान के लिए जो भी उपाय करना चाहें करें।सरकार को सुझाव दें। सरकार दो हजार करोड़ रुपये तो क्रेज़ीके सफाये के लिए बहा ही रही है।'
जब प्रोफेसर ने मछलियों के सफाये आदि के तौर-तरीकों और औचित्य का प्रश्न उठाया तो प्रधानमंत्रीमुस्कुराये-'आप क्या समझते हैं आपदा प्रबंधन क्या होता है। सरकार का अपना तौर तरीका होता है। सरकारेंअपना काम तंत्र से करती हैं। तंत्र के काम करने की अपनी पध्दति है। सरकार को पता है कि केन्द्र से रवानाहुए दस रुपये में से एक ही रुपया वास्तविक कार्य पर खर्च होगा बाकी तंत्र की भेंट चढ़ जायेगा। जब काम शुरूहोता है तभी सबको पता होता है तंत्र कैसे काम करेगा फिर भी दसवां हिस्सा ही सही होता तो है तंत्र के भरोसे।बिना तंत्र के सरकारें नहीं चला करतीं। कई बार तो दसवां हिस्सा भी नहीं होता। कुछ भी नहीं होता अरबों खर्चकरके। राज्य सरकार केन्द्र से विभिन्न मदों में हजारों करोड़ की रकम बिना खर्च किये लौटा देती हैं क्योंकितंत्र के लिए पर्याप्त गुंजाइशें नहीं होतीं। योजनाएं तंत्र को ध्यान में रखकर ही बनायी जायें तो सफल होती हैं।हम उम्मीद करते हैं आप हमारे तंत्र का हिस्सा बनें। तंत्र में बेहतर लोगों की आवश्यकता है ताकि दसवांहिस्सा ही सही काम हो। आप जिसे भ्रष्टाचार कहते हैं हम उसे तंत्राचार कहते हैं। तंत्र का हिस्सा बनकर कुछकर लेना बड़ी कामयाबी है।तंत्र से जुड़कर ही उसमें सुधार किया जा सकता है। उससे अलग होकर किया गयाकोई भी प्रयास टिकाऊ नहीं हो सकता। कुछ देर का गतिरोध ज़रूर पैदा किया जा सकता है किन्तु तंत्र उसगतिरोध को दूर कर ही लेता है। हम और आप जैसे लोगों को तंत्र का हिस्सा भी बनना चाहिए और अपना लक्ष्यको नहीं भूलना चाहिए हम लोग तंत्र से लड़ने नहीं तंत्र गढ़ने वालों में से हैं। एक बड़ी व्यवस्था में ये सब छोटीमोटी चीजें हैं जिससे लड़ें तो हम कुछ नहीं कर सकते। मुझे एक अरब वाले देश को चलाना है मैं एकल व्यवस्थानहीं लाद सकता। आप भी नहीं। मैं जानता हूं पुरस्कार सम्मान आपको प्रभावित नहीं कर सकते किन्तु वहलोगों को प्रभावित करते हैं। आप पुरस्कार लें या दान कर दें या ठुकरा दें हर हाल में लोगों के लिए महत्त्वपूर्णबन जायेंगे पुरस्कार के लिए चयनित होते हैं इसके आपका मान बढ़ेगा आपके कहे को लोग गौर से सुनेंगे तंत्र मेंआपकी स्थिति मज़बूत होगी तो आपको अपने उद्देश्य में अधिक सफलता मिलेगी। चुनाव करीब हैं। इसक्रेज़ीवायरस से तंत्र में नहीं जान आयेगी ऐसी मुझे आशा है।'
----
प्रोफेसर निगम पोर्ट टारटाइज लौटे तो उनकी नज़रबंदी समाप्त हो गयी थी। अपने मित्र कछुए से सलाहमश्विरे के बाद उन्होंने क्रेज़ी फ़ैंटेसी सीरिज की आख़िरी पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में क्रेज़ी फ़ैंटेसी कीवास्तविकता बताते हुए उसे कपोल कल्पित बताया गया था और कहा गया था कि यह आपकी कल्पना भर है।उसकी कोई वास्तविकता नहीं है। सरकार से उन्होंने अपील की कि इस फिल्म बने और इस उपन्यास कोप्रकाशन की अनुमति दी जाये जिससे कि लोगों के मन से क्रेज़ी फ़ेंटेसी का भय जाता रहे। बीमार लोगों के मन सेदहशत जाती रहे और लोग समझ लें कि क्रेज़ी फ़ेंटेसी का कोई अस्तित्व नहीं है।
लेकिन सरकार ने प्रतिबंध नहीं हटाया। क्रेज़ी वायरस से तो विदेश से आये डॉक्टर लड़ते रहे और देश में वायरसका आतंक कुछ दिनों तक फैलाया जाता रहा। मछलियां मारने की झूठी खानापूरी की गयी। मछुआरों को कुछ दिनतक मछली पकड़ने से रोका गया और उन्हें बिछाकर रुपये दिये गये। मुआवजे के नाम पर करोड़ों की बंदरबांटहोती रही। अलबत्ता कुछेक स्थानों पर मछली मारने का नाटक मीडिया के समक्ष ज़रूर किया गया। प्रोफेसरनिगम चैट पर अपने मित्र कछुए से जान गये थे कि तालाब की मछलियां से कोई वायरस नहीं फैला था औरउनमें होने की कोई गुंजाइश भी नहीं थी। सरकारी तंत्र के कारण आखिरकार दो हजार करोड़ क्रेज़ी वायरस कीभेंट चढ़ गया।
इधर, कुछेक और देशों में लगभग इसी समय क्रेज़ी वायरस की खबरें मीडिया में आयीं और संभवतः वहां भीसरकार तंत्र ने उससे ऐसे ही निजात पायी होगी। वहां भी उस विकसित देश, जिसने वायरस भेजा था, डॉक्टरों कीटीम भेजी और दवाएं, जिससे वह विश्व का दरियादिल और दयावान देश माना गया। जो देश अविकसित थे उनकेलिए विकसित देश देवता बन गया था और उनसे अपने स्वार्थ साधकर और मज़ूबत बनता गया।
-------------------
प्रोफेसर निगम सब कुछ जानते बूझते हुए चुप्पी साधे हुए थे और अपने भीतर चल रहे अन्तर्द्वंद्व पर काबूपाने का प्रयास भी कर रहे थे। उनके सामने एक वास्तविक दुनिया थी जिसमें हो रहे क्षरण से वे टकरायें याफिर उस दुनिया की खोज करें जो अभी अनुद्धाटित है। समुद्र की वह दुनिया जहां कितनी ही सभ्यताएंजलमग्न पड़ी हैं अपना रहस्य छिपाये। कितनी ही वनस्पतियां हैं जिनमें मनुष्य को विभिन्न बीमारियों केनिजात दिलाने की शक्ति है। जाने कितने खनिज और रत्न हैं। कितने ही जीवन जिनके बारे में लोग नहींजानते। वे यह जानते थे कि दो में से एक ही पथ का उन्हें चुनाव करना है दोनों काम उनके बूते का नहीं तंत्र मेंसुधार के औजार उनके पास नहीं थे और उसके तरीक़ों भी वे अनभिज्ञ थे दूसरी दुनिया उन्हें अधिक परिचितलगती थी शोध की। उन्होंने मन ही मन तय किया वे शोध के रास्ते पर ही आगे बढ़ेंगे।
इधर, चुनाव हुए गठबंधन सरकार पराजित हुई और दूसरी सरकार आयी लेकिन वह भी गठबंधन वाली। इससरकार ने पुरानी सरकार के तमाम कार्यों को खारिज किया किन्तु दो बातों पर वह पुरानी सरकार से सहमत रहीएक उस विकसित देश से कूटनीति सम्बंध और दूसरे क्रेज़ी वायरस से निपटने में सरकार की भूमिका। हालांकिजल्द ही फिर से क्रेज़ी वायरस की खबरें आने लगीं। दूसरी सरकार ने भी उन्हें सलाहकार बनाये रखा और इसबार फिर तीन हजार करोड़ रुपये आबंटित किये गये वायरस के सफाये के लिए। कहा गया कि पिछली बार कुछलोगों ने तालाबों से छोटी मछलियों को निकाल कर कहीं और छिपा दिया था जब वहां टास्क फोर्स मछलियों कोमारने पहुंचा था जिसके कारण क्रेज़ी वायरस जिन्दा रह गया। दूसरे तालाबों में नीचे की मिट्टी में कुछ खासप्रकार की मछलियां छिपी रह गयीं जिनसे यह वायरस बचा रहा। सरकार ने मछलियों के सफाये के लिए यहउपाय निकाला कि पुराने तालाबों को भरा जाने लगा जिससे तो पुराना पानी रहेगा मछलियां और क्रेज़ीवायरस विदा हो जायेगा। इसका फायदा बिल्डरों ने उठाया और तालाब भरकर उस फ्लैट बनाकर बेचा। फिरपर्यावरणविदों के विरोध को देखते हुए नय स्थानों पर तालाब खोदे गये। तीन हजार करोड़ इस प्रकार क्रेज़ी केनाम पर साफ हो गये। प्रोफसर जान गये थे तंत्र वही रहेगा, सरकारें आती जाती रहेंगी।--- '